परिचय – यहाँ में आपकी अपनीं प्यारीं वेबसाइट DM WEALTH के ऊपर लेकर आया हूँ Complete Stock Market Course in Hindi.
अगर आपनें इस Stock Market Course के हर एक पॉइंट को अच्छे से पड़ लिया तो, में दावे के साथ कह सकता हूँ की आप Stock Market के किंग बन जायंगे।
Stock Market Course – स्टॉक मार्केट कोर्स
हम स्टॉक मार्केट के हर एक पॉइंट को बहुत ही बारीकी से और आसान तरीके से समझनें की कोसिस करेंगें। यहाँ नीचे हर Chapter को लिस्ट किया गया हैं आप एक-एक करके हर Chapter को अच्छे से पड़े।
Chapter-1. निवेश की ज़रूरत (Requirement Of Investing)
इन्वेस्टिंग क्यों जरूरी हैं? कोई निवेश क्यों करे?
उदाहरण-अगर निवेश नहीं करेंगे तो क्या होगा। मान लेते है कि आप 50,000 रुपये हर महीने कमाते हैं, और 30,000 रुपये आपका महीने का खर्च है। आपकी मासिक बचत 20,000 रुपये रहती है। इस उदाहरण को आसान बनाने के लिए इसमें इनकम टैक्स को नहीं जोडा हैं। अब ये मान लीजिए कि-
- आपकी कंपनी हर साल तनख्वाह 10 % बढ़ाती है।
- जीवन यापन खर्च – कॉस्ट ऑफ लिविंग (cost of living) हर साल 8 % से बढ़ता है।
- आप 30 साल के हैं और 50 पर रिटायर होना चाहते हैं, तो कमाने के लिए आपके पास 20 साल है।
- रिटायरमेंट के बाद आप किसी भी तरह का काम नहीं करेंगे । आपके खर्चे नहीं बदलेंगे ।
- हर महीने जो 20,000 बचते हैं, वो कैश या नकद के रूप में आपके पास रहता है।
आपनें जो हर महीनें 20,000 बचाएं है जो साल के 20,000×12=2,40,000 रु होते हैं क्योंकी हर साल तनख्वाह 10 % बढ़ाती है और कॉस्ट ऑफ लिविंग (cost of living) हर साल 8 % से बढ़ता है। इसलिए पुरे 20 सालो का देखे तो आप सिर्फ़ 1 करोड़ 70 लाख ही जोड़ पाएंगे।
- 20 साल की मेहनत से आप सिर्फ 1 करोड़ 70 लाख ही जोड़ पाए हैं।
- क्योंकि आपके खर्चे फिक्स थे, तो आपने अपना रहने का तौर-तरीका भी नहीं बदला। आपने अपनी कई अकांक्षाओं जैसे बड़ी गाड़ी, बड़ा घऱ ,घूमना फिरना को दबा दिया।
- रिटायरमेंट के बाद अगर खर्चे 8 परसेंट की दर से बढ़ेंगे, तो 1.7 करोड़ से आपके मोटे तौर पर 8 साल निकल जाएँगे, और उसके बाद क्या करेंगे, ये आप सोच लें।
- क्या करेंगे आप 8 साल के बाद, जब पूरी सेविंग निकल जाएगी। ज़िदगी की गाड़ी कैसे चलेगी?
- अब सवाल आता है की क्या कोई तरीका है जिससे 20 साल में 1.7 करोड़ से कहीं ज्यादा रकम जोड़ी जा सके?
उदाहरण-मान लेते है कि आपने 20 हजार अपनें पास नहीं रखा बल्कि इसे एक ऐसी जगह निवेस किया जो हर साल 12% का रिटर्न देता है उदाहरण के तौर पर- पहले साल में आपने बचाए 2,40,000, जिसे आपनें 12% की दर पर निवेश किया 20 साल के लिए, और ये रुपये 20 साल में हो जाएँगे 20,67,063.
20 साल के बाद आपके पास पहले की तुलना में 1.76 करोड़ के बजाए 4.26 करोड़ रुपये जुड़ जाएंगे जो 2.4 गुणा ज्यादा है।
निवेश क्यों करना चाहिए। बहुत ज़रूरी वजह होती हैं
- महंगाई दर से निपटने के लिए- बढ़ती मंहगाई हमारे पैसे की वैल्यू कम करती है। निवेश करने से इस समस्या से निपटा जा सकता है।
- बड़ी पूँजी जोड़ने के लिए- ऊपर जो उदाहरण दिया गया है, उससे एकदम साफ है कि कैसे निवेश करने से रिटायरमेंट तक आपके पास एक बहुत बड़ी रकम जमा हो सकती है, लेकिन सिर्फ रिटायरमेंट के लिए ही नहीं, निवेश करने से और भी बड़े महत्वपूर्ण काम जैसे बच्चे की पढ़ाई, शादी, घऱ खरीदना, इस तरह के काम के लिए भी पैसे आसानी से जोड़े जा सकते हैं।
- आपकी वित्तीय अकांक्षाओं, ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए।
Investing कहाँ करें?
अब हमें यह पता चल गया है कि निवेश करना क्यों ज़रूरी है। परन्तु अगला सवाल हमारे मन में यह आता है कि निवेश कहाँ करना चाहिए, और किस तरह के रिटर्न मिलनें की उम्मीद करनी चाहिए। निवेश करने के लिए सबसे पहले एक एसेट क्लास, जो आपके रिस्क लेने की क्षमता के मुताबिक हो। का चयन करना हैं
रिटर्न और रिस्क के हिसाब से निवेश को अलग अलग कैटेगरी या श्रेणी में बाँटा जाता है। इन श्रेणियों को अंग्रेजी में एसेट क्लास कहते हैं। कुछ जाने माने एसेट क्लास के नाम नीचे दिए गए हैं
- फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स
- इक्विटी
- रियल एस्टेट
- कमोडिटी ( प्रेशियस मेटल – बहुमूल्य धातु)
Fixd इनकम इंस्ट्रूमेंट्स
invest के इस विकल्प में जो मूलधन ( प्रिंसिपल अमाउंट) होता है, वो सुरक्षित रहता है। इस निवेश पर रिटर्न आपको ब्याज के तौर पर मिलता है। ब्याज आपको सालाना, छह महीने या तीन महीने पर मिल सकता है। निवेश की मियाद खत्म होने पर, जिसे निवेश का मैच्योरिटी पीरियड भी कहते हैं, पूँजी ( कैपिटल) आपको वापस दे दी जाती है।
फिक्सड इनकम निवेश के विकल्प
- बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट
- सरकारी बॉन्ड (जो सरकार जारी करती है)
- सरकारी कंपनियों के बॉन्ड
- कॉरपोरेट बॉन्ड
*जून 2014 के हिसाब से Fixd इनकम इंस्ट्रूमेंट्स का रिटर्न 8 से 11 परसेंट के बीच में होता है।
इक्विटी (Equity)
इक्विटी में निवेश का मतलब होता है शेयर बाज़ार में लिस्ट हुई कंपनियों के शेयर खरीदना और उनको होल्ड करना। जब आप Equity में निवेश करते हैं, तो पूँजी या कैपिटल की गारंटी तो नहीं होती लेकिन इसमें में जो रिटर्न मिलता है, वो काफी अच्छा हो सकता है। इंडियन शेयर बाज़ार का रिटर्न पिछले 15 साल में 14-15 % CAGR ( Compound Annual Growth Rate) के आस पास रहा है। कई कंपनियों ने लंबे वक्त में 20% CAGR तक की कमाई करवाई है।
रियल एस्टेट
रियल एस्टेट में आप मकान, दुकान या ज़मीन में इन्वेस्ट करते हैं। इस निवेश से दो तरह की कमाई हो सकती है। एक कमाई रेंट या किराए के रूप में हो सकती है, दूसरी कमाई प्रॉपर्टी की कीमत में बढ़ोतरी से होती है। लेकिन इस निवेश में बहुत पेचीदगी और उलझन होती है। वक्त बहुत लग सकता है और साथ ही निवेश के लिए काफी बड़ी रकम की ज़रूरत होती है। रियल एस्टेट का रिटर्न नापने का कोई आधिकारिक फॉर्मूला नहीं है इसलिए इस पर टिप्पणी करना मुश्किल है।
कमोडिटी
सोना और चांदी निवेश का जाना-माना विकल्प है। लंबे वक्त में सोना और चांदी, दोनों की कीमत में इज़ाफा होता है। इन दोनों में 20 साल तक के निवेश से लगभग 8 परसेंट CAGR तक का रिटर्न मिला है। इनमें निवेश गहने खरीद कर किया जा सकता है या फिर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड ( Exchange Traded Fund- ETF ) के ज़रिए।
हमने जो शुरूआत में उदाहरण दिया था, उसी को ध्यान में रखते हुए। अगर 20 साल के लिए कोई फिक्स्ड इनकम, इक्विटी और बुलियन में निवेश करता है, तो कितनी रकम जुड़ेगी।
- अगर फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रुमेंट में निवेश किया और रिटर्न औसतन 9 परसेंट सालाना मिला तो 3.3 करोड़ रुपये मिलेंगे
- इक्विटी में अगर 20 साल के लिए निवेश किया और रिटर्न औसतन 15 परसेंट सालाना हुआ तो 5.4 करोड़ रुपये
- कमोडिटी यानि सोने-चांदी में निवेश में रिटर्न 8 परसेंट सालाना का मान कर चलें तो 3.09 करोड़ रुपये
तो साफ है कि इक्विटी में निवेश सबसे बढ़िया रिटर्न देता है, खासकर तब जब आप लंबे वक्त के लिए निवेश करते हैं।
*इनवेस्टिंग से जुड़ी ज़रूरी बातें-
जब आप invest करते हैं तो ये ध्यान रखना चाहिए कि सारा का सारा निवेश एक ही एसेट क्लास में ना करे। निवेश को अलग अलग एसेट क्लास में बाँटना बहुत ज़रूरी है ( इस प्रक्रिया को एसेट एलोकेशन कहते हैं)।
उदाहरण के लिए, 23-25 साल की उम्र वाले युवा प्रोफेशनल ज्यादा रिस्क ले सकते हैं क्योंकि उनकी उम्र कम है और निवेश के लिए वक्त ज्यादा है। ऐसे में उन्हें कुल निवेश का लगभग 70% इक्विटी में लगाना चाहिए, 20% कमोडिटी में और बाकी फिक्स्ड इनकम निवेश में।
इसी तरह जो निवेशक रिटायर हो चुका है, कायदे से उसके कुल निवेश का 80 परसेंट फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रुमेंट में, 10 परसेंट इक्विटी में और 10% सोने-चांदी में होना चाहिए। ये जो रेश्यो है यह किस एसेट क्लास में कितना परसेंट होना चाहिए, वो आपके के रिस्क लेने की क्षमता पर निर्भर करता है।
Chapter-2. Stock Market को रेगुलेट कोन करता हैं?
शेयर बाज़ार क्या है?
हमने chapter-1 में पढ़ा था कि इक्विटी invest का एक ऐसा विकल्प है जिसमें महंगाई से कहीं ज्यादा रिटर्न देने की क्षमता है। अब सवाल ये आता है कि इसमें निवेश कैसे करें? इसका जवाब जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि stock market में invest कौन-कौन से लोग करते हैं और ये पूरा सिस्टम कैसे काम करता है।
शेयर बाज़ार में कौन-कोन हिस्सा लेते हैं और उन्हें रेगुलेट कोन करता है?
शेयर बाज़ार में कोंई भी invest कर सकता हैं। जो भी शेयर बाज़ार में invest करते हैं उन्हे मार्केट पार्टिसिपेंट्स (Market Participants) कहा जाता है।
- Retailer’s – भारत के मूल नागरिक जो भारत में ही रहते हैं, जैसे हम और आप।
- NRI’s और OCI – भारतीय मूल के नागरिक जो विदेशों में बसे हैं।
- घरेलू संस्थागत निवेशक (Domestic Institutions) – इसमें बड़ी-बड़ी भारतीय कंपनियाँ आती हैं, जैसे- LIC
- घरेलू ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ ( Asset Management Companies) – इस वर्ग में आमतौर पर घरेलू म्युचुअल फंड कंपनियाँ होती हैं जैसे SBI म्युचुअल फंड, DSP ब्लैक रॉक, फिडेलटी इंवेस्टमेंट्स, HDFC AMC।
- विदेशी संस्थागत निवेशक (FII-Foreign Institutional Investors) – इसमें विदेशी कंपनियाँ, विदेशी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ, हेज फंड्स आते हैं।
हर कोंई शेयर बाज़ार से पैसा कमाना चाहता है। जब पैसे की बात आती है, तो इंसान के अंदर लालच बहुत ज्यादा होता है। कोई भी इंसान लालच के चक्कर में गलत काम कर सकता है। भारत में इस तरह के घोटाले पहले भी हुए हैं, जैसे हर्षद मेहता घोटाला। इसलिए एक रेगुलेटर होना चाहिए जो नियम कानून बनाए और ये सुनिश्चित करे कि किसी तरह की गलत हरकतें बाज़ार में न हो, और सभी को पैसा कमाने का सही मौका मिले।
रेगुलेटर
भारत में शेयर बाज़ार को SEBI भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ( The Securities and Exchange Board of India) रेगुलेट करता हैं। SEBI का उद्देश्य निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना, तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित समस्याओं का प्रावधान करना है। सेबी ये सुनिश्चित करता है कि
- स्टॉक एक्सचेंज – NSE और BSE, अपना काम सही तरीके से करें।
- स्टॉक ब्रोकर्स और सब ब्रोकर्स नियमानुसार काम करें।
- शेयर बाज़ार में हिस्सा लेने वाली कोई एंटिटी गलत काम न करे।
- कंपनियाँ शेयर बाज़ार का इस्तेमाल सिर्फ खुद के फायदे के लिए न करें।
- छोटे निवेशकों के हित की रक्षा हो।
- बड़े निवेशक, जिनके पास बहुत पूंजी है, वो अपने हिसाब से बाजार में हेर-फेर न करें।
इन उद्देश्यों को देखते हुए ये ज़रूरी है कि SEBI सभी एंटिटी को रेगुलेट करे। किसी एक की गलत हरकत से शेयर बाज़ार में उठा पटक मच सकता है।
Chapter-3. फाइनेंशियल इन्टरमीडियरीज क्या हैं?
शेयर बाजार में आपके शेयर खरीदने से ले कर उस शेयर के आपके डीमैट एकाउंट में आने तक कई तरह की संस्थाएं बैकएंड में काम करती हैं, जिससे ये काम सही तरीके से होता हैं। यह काम सेबी के ruls के मुताबिक होता हैं जिससे आपको कोई दिक्कत न हो। इन काम करनें वालीं संस्थाओ को ही फाइनेंशियल इन्टरमीडियरीज (Financial Intermediaries) कहाँ जाता है।
ब्रोकर – Stock Broker
ब्रोकर शेयर बाजार का सबसे महत्वपूर्ण इन्टरमीडियरी होता है। ये एक कॉपोरेट एंटिटी (Corporate Entity) है जो शेयर एक्सचेंज में ट्रेडिंग मेंबर के तौर पर रजिस्टर्ड होते हैं और इनके पास स्टॉक ब्रोकिंग का लाइसेंस होता है। और ये सेबी के नियमों के तहत काम करते हैं।
डिपॉजिटरी पॉर्टिसिपेंट – Depository Participants
डिपॉजिटरी आपके डीमैट एकाउंट में आपके सभी शेयरों को डिजिटल फॉर्म में रखने का काम करती है। इसे आप अपनी डिजिटल तिजोरी भी मान सकते हैं।
आपके ब्रोकर के पास खोला गया ट्रेडिंग एकाउंट और डिपॉजिटरी के पास खुला डीमैट एकाउंट आपस में जुड़े होते हैं।
उदाहरण के तौर पर अगर आप इन्फोसिस का शेयर खरीदना चाहते हैं तो आप अपने ट्रेडिंग एकाउंट पर लॉग इन करेंगे, अपनी कीमत डालेंगे और खरीदने का ऑर्डर डालेंगे और शेयर खरीद लेंगे। यहाँ आ कर ट्रेडिंग एकाउंट का काम खत्म। इसके बाद इन्फोसिस का शेयर अपने आप आपके डीमैट एकाउंट में आ जाएगा।
इसी तरह बेचते समय आपको शेयर की कीमत और ऑर्डर ट्रेडिंग एकाउंट पर डालना होगा और शेयर आपके डीमैट एकाउंट से अपने आप निकल जाएंगे।
अभी भारत में सिर्फ़ दो डिपॉजिटरी हैं। NSDL यानी नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (National Securities Depository Limited) और CDSL यानी सेन्ट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (Central Depository Services Limited)। दोनों सेबी के नियमों के तहत काम करती हैं।
जैसे आप ट्रेडिंग एकाउंट खुलवानें के लिए किसी ब्रोकर के पास जाते हैं, NSE या BSE के पास नहीं, उसी तरह डीमैट एकाउंट खोलने के लिए आप NSDL या CDSL के पास नहीं किसी डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (Depository Participant- DP) के पास जाएंगे। ये DP सेबी के नियमों के तहत काम करतें हैं।
बैंक – Banks
ये बैंक से ट्रेडिंग एकाउंट और ट्रेडिंग एकाउंट से बैंक के बीच पैसों का ट्रांसफर करते हैं। ट्रेडिंग, बैंक और डिपॉजिटरी एकाउंट आपस में इलेक्ट्रानिक तरीके से जुड़े होते हैं जिससे आप आसानी से सौदे कर सकें।
NSCCL और ICCL
यह दोनों NSE और BSE की सब्सिडियरी हैं। इनका काम है एक्सचेंज पर होने वाले हर सौदे का सेटेलमेंट करना। अगर आपने किसी कंपनी का एक शेयर 500 के भाव पर खरीदा है तो किसी ने आपको ये शेयर 500 रूपए में बेचा होगा। क्लियरिंग कॉरपोरेशन का काम ये सुनिश्चित करना है कि शेयर बेचने वाले के डीमैट एकाउंट से निकल कर खरीदने वाले के डीमैट एकाउंट में पहुंच जाए। और पैसे खरीदने वाले के बैंक से निकल कर बेचने वाले के बैंक एकाउंट में। तो कुल मिलाकर क्लियरिंग कॉरपोरेशन किसी भी सौदे में ये काम करता है:
- खरीदार और बेचने वाले की पहचान करना और उनके एकाउंट में पैसे और शेयर का हिसाब किताब जोड़ना।
- ये पक्का करना कि सौदा पूरा हो और कोई भी पार्टी सौदे से पीछे ना हट जाए।
Chapter-4. आईपीओ (IPO)?
अलग अलग स्तर पर कंपनी को पैसों की जरूरत पड़ती है और उसके पास पैसे जुटाने के क्या रास्ते होते हैं। IPO लाने से पहले कंपनी को किन हालातों से जूझना पड़ता है।
IPO क्या होता हैं इसकी प्रकिर्या क्या होती हैं यह समझने के बाद आइए अब स्टॉक मार्केट के अगले पड़ाव पर चलते हैं।
एक सार्वजनिक कंपनी होने के नाते अब कंपनी को वो सभी जानकारी जो कि कंपनी से संबधित है, लोगों को बतानी होगी।
अगर आप किसी आईपीओ में apply करना चाहतें हैं या आप जानना चाहतें हैं की वर्तमान में कोनसा आईपीओ खुला हैं जिसमें apply कर सकतें हैं तो आपको नीचें click करना होगा।
Chapter-5. स्टॉक मार्केट इंडेक्स
अगर आप दुनियाभर के stock market indexes के बारें में जानना चाहतें हैं तो इस पोस्ट को ध्यान से पड़ें।
Chapter-6. स्टॉक मार्केट में प्रयोग होने वाले शब्दों का मतलब?
- कैपिटल मार्केट (Capital Market) – इस सेगमेंट में शेयर, प्रेफरेंस शेयर, वारंट और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड वगैरह खरीदे और बेचे जाते हैं। इस सेगमेंट को और हिस्सों में बाँटा जाता है। जैसे आम शेयरों को इक्विटी सेगमेंट में बेचा खरीदा जाता है। इस सेगमेंट को EQ निशान से पहचाना जा सकता है। अगर आप शेयरों को कैपिटल मार्केट सेगमेंट में खरीद बेच सकते हैं।
- फ्यूचर और ऑप्शंस (Futures and Options): फ्यूचर और ऑप्शंस सेगमेंट को शेयर वायदा बाजार कहते हैं। इस सेगमेंट में लीवरेज्ड प्रॉडक्ट के सौदे होते हैं। इस सेगमेंट को डेरिवेटिव माड्यूल में विस्तार से समझाया जाएगा।
- होलसेल डेट मार्केट (Whole sale debt market): बाजार के इस सेगमेंट में फिक्स्ड इन्कम प्रॉडक्ट के सौदे होते हैं, जैसे सरकारी या गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल्स, बॉन्ड्स और डिबेन्चर्स।
Chapter-7. ट्रेडिंग टर्मिनल क्या होता हैं?
ट्रेडिंग टर्मिनल के ज़रिए आप बहुत सारी चीजें कर सकते हैं, जैसे शेयरों की खरीद बिक्री, अपने फायदे-नुकसान का हिसाब किताब रखना, बाज़ार की चाल पर नज़र रखना, खबरों पर नज़र रखना, अपने फंड या पैसों को मैनेज करना, शेयरों के चार्ट देखना और ट्रेडिंग के तरीकों या टूल्स (tools) तक पहुंचना।
एक अच्छा ट्रेडिंग टर्मिनल आपको बहुत सारी काम की सुविधाएं देता है। वेसे तो आपका ब्रोकर ही आपकों एक ट्रेडिंग टर्मिनल देता हैं लेकिन इसके अलावा भी बहुत सारें ट्रेडिंग टर्मिनल बाजार में उप्लब्द हैं जैसे TredingView.
Chapter-8. क्लियरिंग और सेटलमेंट की प्रक्रिया क्या रहती हैं?
*जब आप शेयर खरीदते हैं? – मान लीजिए आपने 10 अक्टूबर 2022 को रिलायंस इंडस्ट्रीज के 10 शेयर 2500 रुपये के भाव पर खरीदे। आपके सौदे की कुल कीमत हुई 25000 रुपये (10*2500)। जिस दिन आप ये सौदा करते हैं उसे ट्रेड डे या टी डे (T Day) कहते हैं।दिन के अंत होने तक आपका ब्रोकर 25000 रुपये और जो भी फीस होगी, वो आपसे ले लेगा।
*जिस दिन आपने सौदा किया उसका अगला दिन टी+1 डे (T+1 Day) कहलाता है। T+1 day को आप अपने शेयर बेच सकते हैं, जो आपने पिछले दिन खरीदे हैं। इस तरह के सौदे को BTST-Buy Today, Sell Tomorrow या ATST- Acquire Today, Sell Tomorrow कहते हैं। याद रखिए कि शेयर अभी भी आपके डीमैट अकाउंट में नहीं आए हैं। इसका मतलब आप ऐसे शेयर बेच रहे हैं, जो अभी तक आपके हुए नहीं है। इसमें एक रिस्क है। वैसे हर BTST सौदे में रिस्क नहीं होता, लेकिन अगर आप बी ग्रुप के शेयर या ऐसे शेयर जिनकी खरीद-बिक्री बहुत कम होती है, उनका सौदा कर रहे हैं, तो आप मुसीबत में फंस भी सकते हैं।
अगर आप बाज़ार में नए हैं, तो आपके लिए बेहतर यही होगा कि आप BTST से दूर रहें क्योंकि आप उसके रिस्क को पूरे तरह से नहीं जानते।
इसके अलावा आपके नजरिए से T+1 day का कोई खास महत्व नहीं है, हालांकि शेयर खरीदने के लिए दिए गए पैसे और सारी फीस सही जगह पहुंच रही होती है।
*तीसरे दिन यानी T+2 day को दिन में करीब 11 बजे जिस आदमी ने आपको शेयर बेचे हैं उसके अकाउंट से शेयर निकल कर आपके ब्रोकर के अकाउंट में आ जाते हैं, और ब्रोकर यही शेयर शाम तक आपके अकाउंट में भेज देता है। इसी तरह जो पैसे आपके अकाउंट से निकले थे, वो उस इंसान के अकाउंट में पहुंच जाता है जिसने शेयर आपको बेचे।
अब शेयर आपके डीमैट अकाउंट में दिखेंगे। आपके पास अब रिलायंस के 10 शेयर होंगे।
इस तरह T Day को खरीदे गए शेयर आपके अकाउंट में T+2 Day को आएंगे और T+3 Day को उनका सौदा फिर से कर पाएंगे।
आप जब शेयर बेचते हैं, तब क्या होता है? – जिस दिन आप शेयर बेचते हैं, वो ट्रेड डे (Trade Day ) होता हैं, और इसे T Day लिखा जाता है। शेयर बेचते ही उतने शेयर आपके डीमैट अकाउंट में ब्लॉक हो जाते हैं। T+2 Day के पहले ये शेयर एक्सचेंज को दे दिए जाते हैं और T+2 Day को उन शेयरों की बिक्री से मिलने वाले पैसे, फीस और चार्जेज कट कर, आपके अकाउंट में आ जाते हैं।
अंत में,
आपकों हमारी यह पोस्ट जिसमें मेने आपकों Complete Stock Market Course in Hindis के बारें बताया हैं अगर आपका फिर भी कोंई सवाल हैं तो नीचे कमेन्ट करे।